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मेरे प्रभु श्री राम हैं

मेरे प्रभु श्री राम हैं    अखिल कोटि ब्रह्मांड के  कण कण में जो व्याप्त हैं , रघुकुल नंदन जानकी वल्लभ  मेरे प्रभु श्री राम हैं |     राम नाम का ले के सहारा  लेखनी को तैयार किया , राम नाम के अगाध सिंधु से  अंजुली भरने का प्रयास किया|      मैंने प्रभु […]

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राम तुम्हारे दर्शन की बस जीवन की अभिलाषा है

राम तुम्हारे दर्शन की बस जीवन की अभिलाषा है राम तुम्हारे दर्शन ही तो जीवन की परिभाषा है राम तुम्हारे अनुकम्पा ही जीवन जीने की आशा है। राम तुम्हारी मर्यादा औरराम तुम्हारी नैतिकता राम तुम्हारे दुःख सहने की कोई नहीं सीमा रेखा राम तुम्हारी अनुकम्पा की बची हुई अभिलाषा है। कभी अनर्थ का भाव न

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राम चले वनवास सिया जब बोल उठे तब लक्ष्मण भाई

राम चले वनवास सिया जब बोल उठे तब लक्ष्मण भाईकेवल सार यही इस जीवन का नत मस्तक हों चरणाईधर्म कहे उस ओर चलो जिस राह चलें हमरे रघुराईसोच रहे चुप राम खड़े अब के हठ लक्ष्मण ने दिखलाई रचना निर्मल  

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राक्षस रावण जा पहुँचा वन पंचवटी हरने परनारी

राक्षस रावण जा पहुँचा वन पंचवटी हरने परनारी जंगल खूब घना जिसमें सह कष्ट रहे वह राजकुमारी मोहित था लख सुंदर नार हिया चुभती वह नैनकटारी भेष धरा उसने मुनि का जब , ली छल से हर राम पियारी। रचना निर्मल  

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राम का आगमन

राम का आगमन सज गई देहली वीथिका आयतनराम के आगमन में बिछे हैं नयन ढोल बजने लगे गाँव सजने लगेराम आए नगर भाग्य जगने लगे।हर दिशा से महक कर हवाएँ चलीराम से है मिलन आस दिल में पली। देव गण हैं मुदित देख कर ये अयनराम के आगमन में बिछे हैं नयन नेह के दीप

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लंकेश्वर पड़े धरा पे, अभिमान सभी था नष्ट हुआ

लंकेश्वर पड़े धरा पे, अभिमान सभी था नष्ट हुआ,बल, बुद्धि निष्काम हुए, और अहंकार का मद टुटा, लखन सुमित्रा के लाला को, नाग राज निज के भ्राता को,आदेश हुआ रघुनन्दन का, जाओ प्रणाम करो रावण को, सुनकर लखन निस्तेज हुए, सोचा मन में ना बोल सके, उस कपटी के सम्मुख, मैं क्यूँ जाऊँ? कैसे ये

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प्रभु श्री राम

प्रभु श्री राम श्री राम हैं केवल शब्द नहीं सम्पूर्ण जीवन सार हैं। रोम रोम झंकृत राम हैं श्री राम जगत आधार हैं। मुनियों का सत्संग सानिध्यराम विराजित तत्वज्ञान। हैं मानस पृष्ठों पर अंकितराम नाम अनुपम आख्यान। यज्ञ कर्म कण कण राम हैंश्री राम बने प्रतिमान हैंराम नाम पावन सरयू जल। अम्बर बीच दिनमान है।

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राम तुम्हारी सतत खोज है

राम तुम्हारी सतत खोज है वेदना के विशाल व्योम में राम तुम्हारी सतत खोज है। हम शापित हैं दशरथ जैसेकैकेयी हुईं हैं इच्छाएँ वनवास सरीखा है जीवनहैं भरत प्रतीक्षा सी आशाएँ मृग मारीचिका के विलोम में राम तुम्हारी सतत खोज है। प्रणय प्रताड़ित हुआ सदा हीसूपर्णखा का भाग्य लिएहुआ जटायु मन का पाखीप्रेम प्रदीप्त वैराग्य

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*कजली भजन *

* कजली भजन * हरे रामा वनको चले रघुराई सिया सुकुमारी रे हारी।।हरे रामा नाशत असुरहिँ संतो के भय हारी रे हारी।। केकई ने वर मांगा सुनके दशरथ हुए अधीरा रामा।वन में न भेजो मेरे राम को कहते भर भर नीरा रामा। कि हरे रामा दे दो राज भरत को चाहे सारी रे सारी ।हरे

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शबरी

शबरी भील कुमारी ,नव यौवना, श्रमनामतंग ऋषि से मिले ज्ञान को सहेजा तुमने अपने मन मेंअपने चक्षु द्वय बिछा आंगन में सुकुमार धनुर्धारी अयोध्यापति श्रीरामअपनी मृगनयनी ढूंढते पहुंचे तुम्हारे धाम एक – एक बेर तुम तोड़ती रही उम्र भर जिह्वा से रसवादन कर तृप्त होपुलकित मन भरती रही दामन अश्रुपूरित नैनों से प्रतीक्षा हुई परिपूर्ण

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