राम चले वनवास सिया जब बोल उठे तब लक्ष्मण भाई

राम चले वनवास सिया जब बोल उठे तब लक्ष्मण भाई
केवल सार यही इस जीवन का नत मस्तक हों चरणाई
धर्म कहे उस ओर चलो जिस राह चलें हमरे रघुराई
सोच रहे चुप राम खड़े अब के हठ लक्ष्मण ने दिखलाई


रचना निर्मल