राम तुम्हारे दर्शन की बस
जीवन की अभिलाषा है
राम तुम्हारे दर्शन ही तो
जीवन की परिभाषा है
राम तुम्हारे अनुकम्पा ही
जीवन जीने की आशा है।
राम तुम्हारी मर्यादा और
राम तुम्हारी नैतिकता
राम तुम्हारे दुःख सहने की
कोई नहीं सीमा रेखा
राम तुम्हारी अनुकम्पा की
बची हुई अभिलाषा है।
कभी अनर्थ का भाव न आया
तुम में शत्रु के हित भी
नैतिकता न छोड़ी तुमने
कठिन कठिन समय में भी
धीर रहे रणधीर रहे
यह जीवन की परिभाषा है।
सब को सहज भाव से भेंट
कोई नहीं पराया है
बिन कारण के कृपा करते
कोमल हृदय तुम्हारा है
चरित तुम्हारा करुणामय है
मानवता की परिभाषा है।
बिन साधन के भी रन में
तुम धीरोदात्त बने रहते
दुष्ट जनों के लिए हमेशा
धनद हस्त धारण करते
दुष्ट दलन ही जीवन की
निश्चित कर दी परिभाषा है।
डॉ वेद व्यथित