मेरे प्रभु श्री राम हैं

मेरे प्रभु श्री राम हैं 
 
अखिल कोटि ब्रह्मांड के 
कण कण में जो व्याप्त हैं ,
रघुकुल नंदन जानकी वल्लभ 
मेरे प्रभु श्री राम हैं |
 
 
राम नाम का ले के सहारा 
लेखनी को तैयार किया ,
राम नाम के अगाध सिंधु से 
अंजुली भरने का प्रयास किया| 
 
 
मैंने प्रभु को जैसा देखा 
वैसा ही गुणगान किया ,
अवर्णित के वर्णन अप्रतिम का 
मुझ अधम ने है प्रयास किया| 
 
 
विधिना के लेख को देखो 
विधाता ने भी स्वीकार किया, 
भार महि का हरने हेतु 
स्वयं दुःखों का भार लिया |  
 
राम राम को राम बनाने 
वन के दुर्गम पथ पर जाते हैं, 
मानव से महामानव बनने का
जग को पथ बतलाते हैं |
 
राम कृष्ण हैं कृष्ण राम हैं
राम सर्वत्र सर्वज्ञ है,
राम कृष्ण में भेद नहीं
राम कृष्ण मर्मज्ञ हैं। 
 
राम ब्रह्म हैं, राम नारायण
राम ही आदि शिव हैं,
राम शक्ति हैं, राम ही भक्ति
राम सदा सर्वस्व हैं|
 
राम नाम का तत्त्व मर्म 
जिसने जितना ही जाना है ,
अपनी अपनी शैली में खोला  
राम नाम का खजाना है| 
 
कोटि-कोटि भक्तों के राम के
अपने अपने राम है ,
सब रामों के मूल तत्त्व में 
बसे केवल एक राम हैं |
 
राम एक ही हैं फिर भी  
विभिन्न रूपों में सर्वत्र राम हैं, 
सृष्टि का आदि अंत भी 
केवल प्रभु श्री राम हैं |
 
हो गई धन्य लेखनी मेरी 
श्री राम के अलौकिक नाम से, 
राम के चरणों में ही रहे शीश दास का
विनती यही है प्रभु राम से| 
 
मैं अज्ञानी कैसे लिखता 
अक्षर एक भी राम नाम का ,
लिख पाया जो भी मैं स्वामी 
कृपा प्रसाद है राम नाम का |
 
राम नाम की महिमा का मैं
अनवरत ही गुणगान करूँ,
दिव्य सुधा रस संजीवनी का
नित ‘सरल’ मै पान करूँ।
 
जय श्री राम