राम मृदु छंद हैं,राम अनुप्रास हैं
राष्ट्र की देह में राम ही साँस हैं ।देवता भर नहीं राष्ट्र विन्यास हैं। हाँ! पराजित लगे न्याय क्षण के लिए ।सत्य की हो भले कोटि अवहेलना ।जीत जाए मृषा किन्तु संभव नहीं ,सिद्ध लो हो गया ,हत हुई वंचना ।लौटते सत्य की हाथ में ले ध्वजा-धैर्य से काटकर राम वनवास हैं। देवता भर नहीं […]
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