कौशल प्रदेश में जन्मीं थीं,
वे धर्मवती अनुरागी थीं।
नृप दशरथ की थीं प्रिया अत:,
रागी होकर भी त्यागी थीं ||
थी पूर्व जन्म की सतरूपा,
तप किया राम को पाने को,
वो भी सुत के स्वरूप में आ-
कर गोदी में इठलाने को |
हो गये मनोरथ सिद्ध सभी,
अखिलेश्वर सुत बनकर आये,
जो श्रषि-मुनियों को दुर्लभ है,
वे सुख कौशल्या ने पाये |
स्वाँसों में गुंथित स्वप्न सभी,
इस माता के साकार हुए,
स्वर्गिक निधियों से जीवन घट,
के परिपूरित भण्डार हुए ||
सांसारिक नारी के जैसे,
पालन पोषण निज हाथ किया,
बालापन की हठकेलों में,
बढ़ चढ़ कर प्रभु का साथ दिया |
थीं रानी राजघराने की,
पर अपना धर्म निभाया था,
शिक्षा हित ममता को त्यागा,
गुरुकुल में इन्हें पठाया था ||
राज्याभिषेक के बदले जब
इनके सुत को वनवास हुआ,
पत्थर रख लिया हृदय पर था
भावों का कवचित न भाष हुआ ||
ऐसी माता के पूजन से
मिटती सब दुनियाँदारी है,
उनके जैसी इस भूतल पर
हो सकती अन्य न नारी है ||
चारु मित्रा,आगरा