पुरुषोत्तम तुम जब भी आना
हर आंगन में खुशियां लाना
किसी आंख में ना हो आंसू
हर मुखड़े पर हंसी सजाना
कोई अपनों से ना रूठे
जो बिछुड़े हैं उन्हें मिलाना
पतझड़ तो आना जाना है
हर बगिया में फूल खिलाना
सांझ सकारे तुम रखवारे
प्रभु दे दो तुम वह सुरताल
अमृत रस से भर दो घट-घट
अंतस्तल तक भर दो ताल
ऐसा मंत्र दिखा दो मुझको
जिस विध शरण तुम्हारी पाऊं
प्रभु ! काटो बाघा का बंधन
तव सुमिरन से भव तर जाऊं
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डाॅ.कमलेश मलिक,पूर्व प्राचार्या
सोनीपत , हरियाणा