गुणों के सागर- मेरे राम

धन्य है देश मेरा ,धन्य है मेरी भारत भूमि,
जन्मे जहाँ श्री राम,राम नमामि,राम नमामि।

राम केवल नाम नहीं , जन-जन के हैं कंठाहार ,
दृष्टिकोण उनका सार्थक, हैं वे जन-जन के आधार।
केवट को तारा और शबरी का किया उन्होंने उद्धार ,
जिन्हें पतित कहता था जग,वे बने उनके पालनहार।

मर्यादा पुरुषोत्तम व आदर्श पुरुष वे कहलाए ,
न केवल भारत वरन् विश्व के देशों में वे छाए।

दुष्टों के संहारक,जनता के प्रति पालक बनकर उभरे ,
जनसेवा भावना,न्याय प्रियता बस राम-राज्य में संचरै।

स्नेह,सेवा,त्याग,सत्य निष्ठ जीवन का अनुगमन किया ,
देश-विदेश में मिली ख्याति,उनके पथ को अक्षुण्ण रखा।
भारतीय संस्कृति में सर्वोच्च सम्मा़न मिला,ओ मेरे राम ,
जीवन-दर्शन प्रतीक बने,मानवता को गौरवान्वित किया मेरे राम।
नर-वानर,मानव-दानव,सबसे रिश्ता,जाति वर्ग से रहे परे,
जो रहे संयमित,मर्यादित,संस्कारित,राम झलक उनमें झरे।
तुमसे बढ़कर कोई श्रेष्ठ नहीं,तुमसे उत्तम कोई व्रत नहीं ,
तुमसे उत्कृष्ट कोई अनुष्ठान नहीं,तुमसे श्रेष्ठ कोई योग नहीं।
ओ जनमानस के राम ,करते हम सब तुम्हें प्रणाम ,
सीमा की मर्यादा में जो रहें, तो बस जाए राम धाम।

स्वरचित
उषा गुप्ता
इंदौर