2025-01

हम सब ने मन के मन्दिर में दीप जलाए हैं

हम सब ने मन के मन्दिर में दीप जलाए हैं आज अयोध्या नाथ अयोध्या वापस आए हैं हम——- कितने हर्षित नादिया , सूरज, चाँद, सितारे हैं फूलों ने खुद परम पूज्य के पाओं पखारे हैं कलियों ने भी मधुरिम मधुरिम गीत सुनाए हैं आज —— कौशल्या के दशरथ के वो राज दुलारे हैं भक्त जनों […]

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बरसों बाद राम बिराजे

बरसों बाद राम बिराजे,बाजत ढोल,मृदंग और बाजे। सारी अवध में भया उजियारा,बैठा सिंहासन दशरथ प्यारा। मथुरा,पुरी,उज्जैन और काशी,देत बधाई सब भारतवासी। बरसों बरस जो तक रही आँखें,आज पुलकित हों भर आई आँखें। आज अवध में कोलाहल भारी,देस-बिदेस से पधारे नर-नारी। सफल हुआ ये उसका जीवन,करे इक बार जो राम के दर्सन। बहुत तरस ली अब

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स्वागत में

राम आपके स्वागत में अनेकों दीप जलाऊ द्वारे खीर पूड़ी बनाऊं रुचि रुचि भोग लगाऊं।। लक्ष्मण आपके स्वागत में अनेकों रंगोली बनाऊं द्वारे दीपों से अंगना सजाऊं रोशनी से दीवारें सजाऊं।। सिते आपके स्वागत में मिठाइयां अनेकों बनाऊं दीपमाला से घर सजाऊं मिटे मिटे मालपूए बनाऊं।। प्रिय वर आपके स्वागत मेंकोई चांद अमावस मेंगिरे नयनों

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राम की महिमा

राम तुम्हारे ह्रदय में, सारा जगत समाया।सत्य, धर्म, और त्याग का तुम्हीं ने, जीवन का पथ दिखाया। मर्यादा की मूरत तुम, आदर्शों के दीप हो।दुख में भी मुस्कान रचते, मिसाल में अनुपम हो। वन-वन में तुमने कष्ट सहे, पर धर्म न छोड़ा।प्रजा के खातिर राज तजा, हर बंधन को तोड़ा। शबरी के जूठे बेर चखे,

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मनोकामना

हे राम कृपा करना ,मुझे मोक्ष कभी नहीं देना,जन्म जन्म में वास प्रभु जी, अवधपुरी में देना।हे राम——‐नभ में जल में या थल में,जिस योनी में जन्म मिले,अवधपुरी की पावन रज का,सुखद स्पर्श मिले,श्रद्धा का मान रख लेना, मुझे मोक्ष कभी नहीं देना।हे राम——–हे रघुनंदन सरयु के शुभ तीर्थ सलिल में, मछली मैं बन जाऊँ

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श्री राम का अयोध्या आगमन

आगमन है अयोध्या में, राम का भव्य मन्दिर में। दिवाली हम मनायेंगे, करेंगे दर्श कण कण में। हवाएं गीत गायेंगी, हृदय में हार्दिक बंदन। मेरे घर राम आयेंगे, लगेगा माथे पे चंदन। राम सरयू की धारा में, राम जीवों की हलचल में। जलेंगे द्वीप हर घर में, तो दर्शन की लौ में। विरह की आग

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जिस धरा पर हुवे अवतरित राम हैं

जिस धरा पर हुवे अवतरित राम हैं, उस धरा को ही कहते अवध धाम हैं।।इससे पावन नहीं कुछ हमारे लिए, जो भी हैं बस हमारे प्रभु राम हैं।। १कितने वर्षों बिताए हैं तिरपाल में, राम को हमनें रक्खा था किस हाल में।कुछ असुर सुर में सुर को मिलाए तभी, ठोक दी देव ने ताल को

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शबरी के राम

रघुवर तुम आओगे कब तकअब मुझे रुलाओगे कब तकअंखियां दर्शन को तरस रहींऐ अश्रु बहाएंगी कब तकरघुवर तुम आओगे कब तक मां शबरी तेरी राह निहारेपलक पांवड़े बिछे हैं द्वारेनयनों से अविरल झरना बहतासिसक-सिसक कर दिल है कहतारघुवर तुम आओगे कब तक मैं राम दरश अभिलाषी हूंतेरे दर्शन की प्यासी हूंमैं ना मथुरा,ना काशी हूंप्रभु

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अयोध्या

अवधपुरी मनभावन अतिशय , पावन सरयु धार ।कण-कण सिंचित भक्ति सुधा से, महिमा अमित अपार ।।सूर्यवंश का शौर्य समाहित वेद ऋचाओं से आवाहित।प्राण जाय पर वचन नं जाये,बूंद बूंद मरजाद प्रवाहित सदाजयी यह सदाशयी भू , रघुकुल यश विस्तार।कण-कण सिंचित भक्ति सुधा से, महिमा अमित अपार।।लक्ष्य सदा जिनका परमारथ इक्ष्वाकु ,रघु ,सगर ,भगीरथकीर्ति पताका उच्च

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राम सहारा जन जन का

है राम सहारा जन-जन का। है नाम सहारा तन- मन का। हम भाव जगत के प्राणी हैं। थोड़े अल्हड़, नादानी हैं।।बस राम- नाम को भजते हैं।निंदा चुगली को तजते हैं।।हमें प्राणों से जो प्यारा है।वह सार जानता कण- कण का।। है राम सहारा जन- जन का। है नाम सहारा तन मन का।। चिंता- चिंतन में

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