जिस धरा पर हुवे अवतरित राम हैं

जिस धरा पर हुवे अवतरित राम हैं, उस धरा को ही कहते अवध धाम हैं।।
इससे पावन नहीं कुछ हमारे लिए, जो भी हैं बस हमारे प्रभु राम हैं।।


कितने वर्षों बिताए हैं तिरपाल में, राम को हमनें रक्खा था किस हाल में।
कुछ असुर सुर में सुर को मिलाए तभी, ठोक दी देव ने ताल को ताल में।।
तब सुनिश्चित हुआ आना निश्चित हुआ अब मिला ये हमारा परमधाम है।।
जिस धरा पर हुवे अवतरित राम हैं, उस धरा को ही कहते अवध धाम हैं।।

इससे पावन नहीं कुछ ————–


राम को लेके आया नहीं है कोई, राम लाए हैं उनको हमारे लिए।।
उनकी भक्ति की शक्ति को पहचानिए, भाव उनका समझिए उन्हें जानिए।।
आज संभल भी फिर से संभलने लगा, इससे बढ़कर के किसने किया काम है।।
जिस धरा पर हुवे अवतरित राम हैं, उस धरा को ही कहते अवध धाम हैं।।

इससे पावन नहीं कुछ ————–


है सनातन पुरातन ये सबसे बड़ा, सबसे उपर शिखर पर अडिग है खड़ा।
मिट गया जो मिटाने की कोशिश भी की, दांव उल्टा उसी का उसी पर पड़ा।
आग लंका में हनुमत लगा आए हैं, अब तो रावण को दिखने लगे राम हैं।।
जिस धरा पर हुवे अवतरित राम हैं, उस धरा को ही कहते अवध धाम हैं।।

इससे पावन नहीं कुछ ————–