है राम सहारा जन-जन का।
है नाम सहारा तन- मन का।
हम भाव जगत के प्राणी हैं।
थोड़े अल्हड़, नादानी हैं।।
बस राम- नाम को भजते हैं।
निंदा चुगली को तजते हैं।।
हमें प्राणों से जो प्यारा है।
वह सार जानता कण- कण का।।
है राम सहारा जन- जन का।
है नाम सहारा तन मन का।।
चिंता- चिंतन में रहते राम।
अग्नि मंत्र भी, हैं श्री राम।।
हार जीत और भीत हैं राम।
गीत- मीत, संगीत हैं राम।।
दुख- सुख में जो निकले मुख से,
है ‘राम’ भरोसा क्षण- क्षण का।।
है राम सहारा जन- जन का।
है नाम सहारा तन- मन का।।
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रचनाकार:- संतोष गर्ग ‘तोष’, पंचकूला (ट्राई सिटी चंडीगढ़)
मो: 93565 32838