Shri Rammandir Kavya

राम ही हैं

🚩”राम भक्त अधिक से अधिक भक्तों तक यह कविता पहुंचाएं”🚩🚩🚩जय श्री राम🚩🚩राम ही हैं आधार हमारे राम सभी के प्यारे हैंभवसागर जो पार कराकर करते हमें किनारे हैं शौर्य ऊर्जा के परिचायक राम ही असली नायक हैंमर्यादा पुरुषोत्तम वो इस संस्कृति के अधिनायक हैं राम के ऊपर कोई टीप्पणी करने वाला पापी हैजीने का अधिकार […]

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नील वर्ण जो हैं पीताम्बर

श्रीराम नील वर्ण जो हैं पीताम्बर ,रावण के संहारक राम ।शीश मुकुट धर कान में कुण्डल ,जग के हैं वो पालक राम । जानकी संग छवि जिनकी है ,जग में सबसे प्यारी ।त्रेतायुग के सूर्यवंशी नृप ,बलि बलि जाऊं तुम्हारी । कौशल्या और दशरथ के ,नयन सितारे राजदुलारे ।भ्राता जो आदर्श बनें, भरत के थे

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श्रीराम की हुई अवहेलना से

#श्रीराम श्रीराम की हुई अवहेलना से,आज कलम बहुत उदास है।लिखने को उठते हाथ हैं,पर कलम बहुत उदास है।। राघव की धरती पर, राघव का होता अपमान है।यह सोच सोच कर, कलम बहुत उदास है।। जय श्री राम लिखने भर से,जहां होता उद्धार है। उस देश में कलम से, किया ये कैसा परिहास है?? राम नाम

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श्री राम सखा वानर

“श्री राम सखा वानर”हम वानर हैं, कपि हैं,वन में विचरते हैं।फूल फल पत्ते खाते हैं स्वछंद फिरते हैं ।। महावीर हनुमान ,सुग्रीव हमारे भाई थे ।राम के हम सखा, राम के अनुयायी थे।। द्वापर में हम किष्किंधापुरी में रहते थे।बाली और सुग्रीव जहां राज करते थे।। मां सीता की खोज में हम वन वन भटके

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आओ अपने राम पुकारें

आओ अपने राम पुकारें मीन मास कहें मधु मास कहें ,चैत्र मास कहें नवमी तिथि पावन । रघु वंशज अज के सुत दशरथ ,गृह अवतार धरे प्रभु मानव ।। श्री विष्णु द्वादशावतार प्रभु ,मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामम् । करुणानिधि शील सुजान प्रभु ,कौशिल्या हिए के सुखधामम् ।। तनु श्यामल गौर सुकोमल अंग ,पट पीत तड़ित

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राम नाम अनमोल है

राम नाम अनमोल है, भजो राम ही राम।राम सुखों के मूल हैं, राम सुखों के धाम।। नदियों में गंगा नदी, तीर्थों में हरिद्वार।नगरों में अवध नगरी,लिए राम अवतार।। राम प्राण है देश के, राम सकल जग धाम।राम राम हैं राम के,कण कण में प्रभु राम।। वर्णन भलाई का करो, तजो बुरे सब काम।मन का रावण

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कैकेयी की व्यथा!

कटु तंज, सहे ना अब जाते,ये तीक्ष्ण वचन ना उर भाते,जग ने माँ का अपमान किया,माँ ममता को बदनाम किया, हे राम ! उचित कथ्य दे दो,मातृत्व बचें, सत्य कह दो। हर ओर निराशा ने घेरा,अपराध बतादो तुम मेरा,मैंने अपराध किया था क्या?तुमको वनवास दिया था क्या? हे राम ! उचित तथ्य दे दोमातृत्व बचें,

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सीता हरण

स्वर्णिम मृग को देख सिया ने,कहा राम से जाओ नाथ।करो शीघ्र आखेट हिरण का,लाओ इसको अपने साथ। मन तो नहीं था चल दीन्हे पर,चाह सिया की पूरी करने।प्राणप्रिया के सुख की खातिर,राम लगे लंबे डग भरने। नाथ नहीं जब लौट के आए,समय बहुत जब बीता।लक्ष्मण-रेखा खींच लखन भी,चले छोड़कर सीता। तभी दशानन पंचवटी में,साधु का

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पुरुषोत्तम राम

पुरुषोत्तम तुम जब भी आनाहर आंगन में खुशियां लानाकिसी आंख में ना हो आंसूहर मुखड़े पर हंसी सजाना कोई अपनों से ना रूठेजो बिछुड़े हैं उन्हें मिलानापतझड़ तो आना जाना हैहर बगिया में फूल खिलाना सांझ सकारे तुम रखवारेप्रभु दे दो तुम वह सुरतालअमृत रस से भर दो घट-घट अंतस्तल तक भर दो ताल ऐसा

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मां कौशल्या

कौशल प्रदेश में जन्मीं थीं, वे धर्मवती अनुरागी थीं।नृप दशरथ की थीं प्रिया अत:,रागी होकर भी त्यागी थीं || थी पूर्व जन्म की सतरूपा, तप किया राम को पाने को, वो भी सुत के स्वरूप में आ-कर गोदी में इठलाने को | हो गये मनोरथ सिद्ध सभी, अखिलेश्वर सुत बनकर आये,जो श्रषि-मुनियों को दुर्लभ है,

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