जनक छंद
जनक छंद**** तन, मन, धन, इज़्ज़त, भवन,ये मेरे किस काम का,सब मेरे प्रभु राम का। कैकेयी के पूर्ण अब,होंगे सारे जाप भी,कट जाएँगे पाप भी। कौशल्या के दो नयन,रस्ता देखें राम का,समय निकट परिणाम का। सिया-लखन को साथ ले,लौट रहे श्रीराम हैं,ले हाथों में हाथ ले। पल-पल, रह-रह, बिन थके,बाट जोहती राम की,प्रजा अयोध्या धाम […]