कैकेयी ने फूल दिये कांटों की डगर नहीं
कब राम हो गये राम, राम को खुद भी खबर नहीं
राजतिलक की सुन तैय्यारी कैकेयी घबराई
कहीं भटक ना जाये निज उद्देश्य से रघुराई
अगर हो गया राजतिलक रघुवर बंध जायेगे
धरती को कैसे दुष्टों से मुक्त करायेंगे
दुनिया देगी ताना पर उद्देश्य ना जानेगी
राम हमें हैं जान से प्यारा वो ना मानेंगी
घुटी कैकयी मन ही मन दिखलाया मगर नहीं
कब राम हो गये राम, राम को खुद ही खबर नहीं
ऋषि – मुनी केवट, निशाद सबका हित सोचा था
मन की ममता मार आंख में सागर रोका था
हनुमत और सुग्रीव सभी का साथ निभाना था
वालि का वध करके सबको धर्म सिखाना था
चित्रकूट और पंचवटी पावन होती कैसे
और भरत में बीज त्याग तप के बोती कैसे
राम समूचे विश्व में हों केवल इस नगर नहीं
कब राम हो गये राम, राम को खुद ही खबर नहीं
करदी मांग स्वर्ण मृग की माया ने रच माया
दुष्ट मरिची जानबूझ हा लक्षमण कह चिल्लाया आया
लाने खोज राम की सिय लक्ष्मण को भेज दिया
साधू भेष धरे रावण सीता का हरण किया
पुन्य जटायु के सत्कर्मों का था राम मिले
शबरी की भक्ति को भी मीठे अंजाम मिले
वन वन ढूंढी सीता छोड़ी कोई डगर नहीं
कब राम हो गये राम राम को खुद ही खबर नहीं
राम न जाते वन तो कैसे भेद ये मिट पाता
वानर भालू रीछ मनुज सबसे प्रभु का नाता
सागर का अभिमान चूर कर सेतु बनाना था
राम सिया, सिया राम एक जग को समझाना था
सिय पावन पूनीत तृण की धरती नित ओट रही
नाश हुआ रावण का जिसके मन में खोट रही
रावण का वध राम के हाथों होना ही तय था
तीन लोक विजयी रावण को राम से ही भय था
सीख किसी की उस पर कुछ कर पाई असर नही
कब राम हो गये राम, राम को खुद ही खबर नहीं
राम धर्म पथ पर चलकर थे धर्म युद्ध जीते
रावण कुल का नाश हुआ अधर्म का विष पीके
बुद्धिमान दश्आनन शिव का परम पुजारी था
एक अकेला वो तोनों लोकों पर भारी था
जिसकी शक्ति देख देवता भी घबराते थे
नवगृह सांझ संवेरे जिसके चरण दबाते थे
वो अधर्म की राह चला जब सिय को हर बैठा
श्री हरि रघुनन्दन के हाथों मृत्यु वर बैठा
कैकेयी पाषाण हृदय बन यदि ये ना करती
दानव कुल से हीन नहीं हो पाती ये धरती
फिर राम न होते राम जो होती कैकेयी अगर नहीं
कब राम हो गये राम राम को खुद ही खबर नहीं
मंजू शाक्य