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काश मैं राजा न होता

लोगों ने मुझको दोष दिया कि इक धोबी के कहने से,मैंने सीता को छोड़ दिया।क्या कभी किसी ने सोचा कि मेरे दिल पर क्या बीती थी? नहीं पता था राजा होने की कीमत कुछ ऐसी थी।अय काश मैं राजा न होता। राजा होने की कीमत में, पत्नी को मैंने त्याग दिया।पर उसकी याद को अपने […]

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राम मृदु छंद हैं,राम अनुप्रास हैं

राष्ट्र की देह में राम ही साँस हैं ।देवता भर नहीं राष्ट्र विन्यास हैं। हाँ! पराजित लगे न्याय क्षण के लिए ।सत्य की हो भले कोटि अवहेलना ।जीत जाए मृषा किन्तु संभव नहीं ,सिद्ध लो हो गया ,हत हुई वंचना ।लौटते सत्य की हाथ में ले ध्वजा-धैर्य से काटकर राम वनवास हैं। देवता भर नहीं

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राममय

जलता रहा में दीप सा ,आगमन को प्रभु राम के ,काया दिया, बाती ये जीवन ,साँसें हैं मनके नाम के ।। राम बस जीवन में उतरें,हर कर्म मर्यादित रहे ,भक्ति हनुमत सी मिले ,ये हृदय आह्लादित रहे ।। राम से मेरी सुबह हो ,राम से ही हर शाम हो ,जीवन सफर जब ये थमे,राम, जिव्हा

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“श्रीराम”

पहचानो कण-कण में इस नाम को।आए कोई बाधा या विपत्तियाद करो श्रीराम को।। क्योंकि राम पुत्र एक आज्ञाकारी हैं, श्रेष्ठतम भाई हैं, एक आदर्श पति हैं।श्रीराम मर्यादा पुरूषोत्तम नजर आते हैं।। क्योंकि राम सबके मित्र हैं, रक्षक हैं,प्रजा पालक हैं, राम सत्य पोषक हैं।श्रीराम राजा के रूप में सबके मन को भाते हैं।। क्योंकि राम

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”आदि-मध्य-अंत”

हृदयाकाश में विचरण करते तुम खिलते कमल-सी सुबह हो प्रियवर ।व्यतीत हुए भ्रम में समस्त निश-दिवसआतुर हैं जानने हेतु, ईश हो या नर।। काल-पग-चाप, सुन मन आलापथिरक-थिरक मेघ घन उतरे।मरुस्थली बादामी धरा कण-कणभीग गए मन के कतरे-कतरे।। बेकल-बेबस फड़फड़ाते व्योम-खग स्वप्न-नगरी के दुर्ग ध्वस्त।तोड़ सीमा-बंधन ज्वलंत विचार हर युग करते मार्ग प्रशस्त।। बहते जलधारा से

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सिया के राम

त्रेता से चलते चलते कलियुग में आ पहुंची हूँ धरती पुत्री इस बार मैं माँ की कोख से जन्मी हूँ। तुम भी इसी धरा पर हो विश्वास से कह सकती हूँ तुम्हारे आने की राह हर पल मैं तकती हूँ। घट घट में रावण है रमा तुम किस किस को मारोगे अहिल्या अनेक और अनेक

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राम का नाम

अवधपुरी के राज दुलारे जन जन के आंखों के तारे। रामलला जन के हितकारीचल जल्दी अब राम दुआरे। वही जगत के पालन कर्तावही जगत के हैं रखवारे थामें रहते डोर भक्त कीनैया सबकी पार उतारे। जीव जगत के सच्चे साथीसबकी बिगड़ी बात संवारे। राम दिखे कण कण में उसकेदिल से जो भी राम पुकारे। राम

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ग़ज़ल – है सहर राम की और शब राम का

है सहर राम की और शब राम का। राम पश्चिम के भी ये पुरब राम का। विश्व है राम से राम ही विश्व हैं, कौन समझे यहाँ पर सबब राम का। सुख मिले या मिले दुःख नहीं फर्क हो, भक्त के सर पे हो हाथ जब राम का। सामना कर सके युद्ध में कौन है,

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मैंने राम को देखा है

कौन हैं राम कैसे थे राम,कब थे राम कहाँ है राम? अक्सर ऐसे प्रश्न उठाते,लोगों को मैंने देखा है। श्रद्धा-सूर्य पर संशय-बादल,मंडराते मैंने देखा है। है उनको बस इतना बतलाना,मैंने राम को देखा है। पितृ वचन कहीं टूट ना जाये,सौतेली माँ भी रूठ ना जाये।राजसिंहासन को ठुकराकर,परिजनों को भी बहलाकर।एक क्षण में वैभव सारा छोड़,रिश्ते

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मैंने क्या अपराध किए हे प्रभू

मैंने क्या अपराध किए हे प्रभू जो मुझको ये परित्याग मिला क्यों मुझे शरण में लिया नहीं क्यों मुझको यह वैराग मिला मैंने प्रीत की रीत निभाई सदा तन मन सब तुमको सौंप दियामैंने कौन से ऐसे कर्म किए मेरे मर्म को ये हतभाग मिलामैंने क्या अपराध किए हैं प्रभू कर्तव्य परायण बनकरके ,सारे आदेशों

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