राष्ट्र की देह में राम ही साँस हैं ।
देवता भर नहीं राष्ट्र विन्यास हैं।
हाँ! पराजित लगे न्याय क्षण के लिए ।
सत्य की हो भले कोटि अवहेलना ।
जीत जाए मृषा किन्तु संभव नहीं ,
सिद्ध लो हो गया ,हत हुई वंचना ।
लौटते सत्य की हाथ में ले ध्वजा-
धैर्य से काटकर राम वनवास हैं।
देवता भर नहीं राष्ट्र विन्यास हैं ।
राम को धर्म से बाँधना भूल है ,
राष्ट्र की धमनियों में रुधिर राम हैं।
चेतना जो युगों से रही पावनी ,
मूल को सींचती वो लहर राम हैं।
राम है नाम बुद्धत्व आभास का –
राम ही प्रेरणा सत्य की प्यास हैं।
देवता भर नहीं राष्ट्र विन्यास हैं।
राम की धारणा को मिला बल अगर ,
राष्ट्र गौरव न इससे बड़ा और है ।
मान जिसको न हो पूर्वजों के लिए ,
कौम दूजा न उससे मरा और है ।
राम नायक नहीं अल्प जन के लिए –
राम सबके लिए एक विश्वास हैं।
राष्ट्र की देह में राम ही साँस हैं।
देवता भर नहीं राष्ट्र विन्यास हैं।
अनुराधा पाण्डेय