त्रेता से चलते चलते
कलियुग में आ पहुंची हूँ
धरती पुत्री इस बार मैं
माँ की कोख से जन्मी हूँ।
तुम भी इसी धरा पर हो
विश्वास से कह सकती हूँ
तुम्हारे आने की राह
हर पल मैं तकती हूँ।
घट घट में रावण है रमा
तुम किस किस को मारोगे
अहिल्या अनेक और अनेक शूर्पणखा
तुम किस किस को तारोगे।
अब हनुमंत नहीं मिलेंगे
वह कलियुग से डरते हैं
सभी बगल में छुरी दबाए
झूठी भक्ति का दम भरते हैं।
हर रोज़ होते बलात्कार
हर पल किसी का हक छिनता
बूढ़ा दशरथ कोने में बैठा
जीवन के शेष है दिन गिनता।
न कोई लक्ष्मण न भरत शत्रुघ्न
अब बस कौरव पांडव हैं
तुम्हारी अयोध्या नगरी में
जातिवाद का तांडव है।
वनवास से मैं भयभीत नहीं
भला वन ही कहां बचे हैं
विधाता की रचना काट कूट
मानव ने शहर रचे हैं।
बहुत उदास है देश अपना
कैसे राम राज्य अब आएगा
मरेंगे जब सब ही रावण
देश दीवाली दशहरा मनाएगा।
नीलम दुग्गल ‘नरगिस’