लोगों ने मुझको दोष दिया
कि इक धोबी के कहने से,
मैंने सीता को छोड़ दिया।
क्या कभी किसी ने सोचा कि मेरे दिल पर क्या बीती थी?
नहीं पता था राजा होने की कीमत कुछ ऐसी थी।
अय काश मैं राजा न होता।
राजा होने की कीमत में, पत्नी को मैंने त्याग दिया।
पर उसकी याद को अपने दिल से, मैं न कभी निकाल सका।
कैसे बिताए थे दिन मैंने, कैसे काटी रातें मैंने,
कुश शैय्या पर सारा जीवन सोकर बिताईं रातें मैंने।
दूसरा विवाह करने की मुझको कोई नहीं मनाही थी,
कई विवाह कर सकता राजा, रीत यही रघुकुल की थी।
जीवन भर तड़पा यादों में, पर विवाह दूसरा नहीं किया।
सीता की यादों की यादों में, सारा जीवन बिता दिया।
संसार दोष देता मुझको, मैंने सीता को त्याग दिया।
पर मैं भी कितना तड़पा हूँँ, उसका न कहीं उल्लेख किया।
अश्वमेध की पूजा में, पत्नी का साथ जरूरी है।
पत्नी के बिना अश्वमेध की पूजा नहीं होती पूरी है।
तब भी सबने मजबूर किया कि तुम्हें विवाह करना होगा।
पत्नी बैठेगी बगल में, तब ही यज्ञानुष्ठान सफल होगा।
तब भी मैंने न विवाह किया, प्रतिमा सीता की बनवाई।
उस प्रतिमा के साथ बैठ, आहुति यज्ञ में डलवाई।
जीवन भर अपने जीवन में आहुतियाँ ही देता आया।
बेशक मैं शासक था, लेकिन सत्ता का सुख न रास आया।
सीता का त्याग नहीं करता, तब भी संसार दोष देता।
सीता पर लांछन लगा-लगा, जीना भी मुश्किल कर देता।
अब सीता देवी कहलाई, संसार दोष देता मुझको।
सीता को दोष नहीं देता,सन्तोष यही काफी मुझको।
खुद मेरा सारा जीवन भी धीरे- धीरे आहुति हुआ।
काश मैं राजा ना होता, सामान्य मनुष क्यों नहीं हुआ?
निष्पाप थी सीता मुझे पता था, फिर भी त्यागना पड़ा उसे,
लेकिन यह व्यथित वेदना मन की, सदा जलाती रही मुझे।
मैं दीपक सा जलता ही रहा, और बाती सा चुकता ही रहा।
किससे फरियाद करूँ जाकर, मैं बुझ-बुझ कर जलता ही रहा।
हाय काश ! मैं राजा न होता, तो पत्नी संग रहा होता।
जंगल में सिया संग रहता, तो जंगल भी मंगल होता।
हाय ! काश मैं राजा न होता।
-राधा गोयल,विकासपुरी,दिल्ली