है सहर राम की और शब राम का।
राम पश्चिम के भी ये पुरब राम का।
विश्व है राम से राम ही विश्व हैं,
कौन समझे यहाँ पर सबब राम का।
सुख मिले या मिले दुःख नहीं फर्क हो,
भक्त के सर पे हो हाथ जब राम का।
सामना कर सके युद्ध में कौन है,
नम्रता से भरे ये अदब राम का।
सात पेड़ों को बींधा था इक बाण से,
ये करिश्मा अनूठा अजब राम का।
युद्ध रावण लड़ा राम से बैर कर,
मोक्ष पाया किया ध्यान जब राम का।
चल पड़े जंग में संग वानर सभी,
धन्य जीवन किया काज जब राम का।
हम सभी हैँ फँसे जग के मझधार में,
तज के माया करें काम सब राम का।
जिंदगी में नहीं और कुछ चाहिये,
मिल गया है मुझे नाम अब राम का।
जो मिला है मुझे राम ने ही दिया,
ये ग़ज़ल राम की ज्ञान सब राम का।
और कुछ दिल नहीं चाहता है ‘अवि’,
हो जिगर में बसा अक्स जब राम का।
स्वरचित – विवेक अग्रवाल ‘अवि’