लंकेश्वर पड़े धरा पे, अभिमान सभी था नष्ट हुआ
लंकेश्वर पड़े धरा पे, अभिमान सभी था नष्ट हुआ,बल, बुद्धि निष्काम हुए, और अहंकार का मद टुटा, लखन सुमित्रा के लाला को, नाग राज निज के भ्राता को,आदेश हुआ रघुनन्दन का, जाओ प्रणाम करो रावण को, सुनकर लखन निस्तेज हुए, सोचा मन में ना बोल सके, उस कपटी के सम्मुख, मैं क्यूँ जाऊँ? कैसे ये […]
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