शबरी
शबरी भील कुमारी ,नव यौवना, श्रमनामतंग ऋषि से मिले ज्ञान को सहेजा तुमने अपने मन मेंअपने चक्षु द्वय बिछा आंगन में सुकुमार धनुर्धारी अयोध्यापति श्रीरामअपनी मृगनयनी ढूंढते पहुंचे तुम्हारे धाम एक – एक बेर तुम तोड़ती रही उम्र भर जिह्वा से रसवादन कर तृप्त होपुलकित मन भरती रही दामन अश्रुपूरित नैनों से प्रतीक्षा हुई परिपूर्ण […]