राम नाम की महिमा
प्रभु श्रीराम से ज्यादा उनका नाम प्रभावशाली है ।रूप के बिना देखे भी राम नाम का स्मरण किया जाए, तो विशेष प्रेम के साथ वह रूप सामने आ जाता है ।
इन नाम और रूप में कौन छोटा है ,और कौन बड़ा है यह कहना अपराध है ।इनके गुणों की महिमा सुनकर साधु पुरुष राम नाम के अधीन देखे जाते हैं ।
नाम के बिना रूप का ज्ञान नहीं हो सकता ,समझने में नाम और नामी दोनों एक से हैं ,किंतु दोनों में परस्पर स्वामी और सेवक के समान प्रीति है। प्रभु श्री राम अपने नाम का अनुगमन करते हैं ,नाम लेने से ही वह वहां आ जाते हैं ।प्रभु श्री राम का नाम जगत का पालन और विशेष रूप से भक्तों की रक्षा करने वाला है ।
आदिकवि श्री बाल्मीकि जी ने राम नाम के प्रताप को जांचने के लिए उल्टा नाम मरा मरा जपा और पवित्र हो गए।
श्री शिव जी के इस कथन को सुनकर की एक राम नाम ही सत्य नाम के समान है, पार्वती जी सदा अपने पति श्री शिव जी के साथ राम नाम का जप करती रहती हैं ।
श्री राम नाम के प्रति पार्वती जी के हृदय की ऐसी प्रीति देखकर श्री शिव जी हर्षित हो गए और उन्होंने स्त्रियों में भूषण स्वरूप पार्वती जी को अपना भूषण बना लिया।
राम नाम के दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैं जो वर्णमाला रूपी शरीर के नेत्र हैं ।भक्तों के जीवन है ,तथा स्मरण करनेे मात्र से सुलभ और सुख देने वाले हैं ,और जो इस लोक में लाभ और परलोक में भी निर्वाह करते हैं ।
जगत में चार प्रकार के राम भक्त हैं
प्रथम अर्थीर्थी अर्थात् धन आदि की चाहत से भजने वाले। दूसरे आर्त अर्थात संकट की निव्रति के लिए राम नाम भजने वाले ।
तीसरे जिज्ञासु ,भगवान को जानने की इच्छा से भजने वाले।
चौथे ज्ञानी भगवान को तत्व से जानकर स्वाभाविक ही प्रेम से भजने वाले ,
राम भक्त हैं ।
और चारों ही पुण्यात्मा ,पापरहित और उदार हैं और चारों को ही नाम का सहारा है ,जो सब प्रकार की कामनाओं से रहित श्रीराम भक्ति के रस में लीन है बे निरंतर नाम रूपी सुधा का आस्वादन करते रहते हैं ।
तुलसीदास जी कहते हैं अगर तू भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहता है तो मुख रूपी द्वार की जिव्हा रूपी देहली पर राम नाम रूपी मणि दीपक को रख,।
श्री रामचंद्र जी ने भक्तों के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करके स्वयं कष्ट सहकर साधुओं को सुखी किया, परंतु भक्तगण प्रेम के साथ नाम का जप करते हुए सहज ही में आनंद और कल्याण के घर हो जाते हैं।
श्रीहरि का यश वर्णन वाणी को पवित्र और उत्तम फल देने वाला होता है।
इस प्रकार राम का नाम, ब्रह्म और सगुण श्री राम दोनों से बड़ा है ।
यह वरदान देने वालों को भी पुण्य देने वाला है ,श्री शिव जी ने अपने हृदय में यह जानकारी सौ करोड़ राम चरित्रों में से इस राम नाम को ही ग्रहण किया है ।
नाम ही के प्रसाद से शिवजी अविनाशी हैं और अमंगल वेश वाले होने पर भी मंगल दायक है ।सुखदेव जी और सनकादि सिद्ध मुनि ,योगी नाम के ही प्रसाद से ब्रह्मानंद को प्राप्त करते हैं ।
नारद जी ने नाम के प्रताप को जाना है हरि हर संसार को प्यारे हैं और नारद जी हरि और हर दोनों को कह रहे हैं ,नाम के जपने से और प्रभु की कृपा से प्रहलाद भक्त शिरोमणि हो गए ।भक्त ध्रुवजी ने ग्लानी से हरी नाम जपा और उसके प्रताप से अचर अनुपम स्थान प्राप्त किया। हनुमान जी ने पवित्र नाम का स्मरण करके श्री राम जी को अपने वश में कर रखा है ।
नीच अजामिल ,गज, और गणिका भी श्री हरि के नाम के प्रभाव से मुक्त हो गए ।
कलयुग में राम का नाम कल्पतरू और कल्याण का निवास है ,जिसको स्मरण करने से निकृष्ट तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गये। चारों युगों में ,तीनों कालों में, और तीनों लोकों में नाम को जपकर जीव शोक रहित हो जाता है।
वेद पुराण और संतों का मत है कि समस्त गुणों का फल श्री राम जी में प्रेम होना ही है ।
श्री राम का नाम संसार के सब कष्टों को नाश कर देने वाला है ,और राम नाम मनोवांछित फल देने वाला है ।कलयुग में सत्कर्म ,भक्ति और ज्ञान ना होने के कारण राम नाम का ही एक आधार है ।
अच्छे भाव से ,और बुरे भाव से ,क्रोध से ,या आलस्य से किसी तरह से भी राम का नाम जपने से ,दसों दिशाओं में
कल्याण होता है ,
उसी परमकल्याणी राम नाम का स्मरण करके ,श्री राम रघुनाथ जी को मस्तक नवाकर सर्वत्र कल्याण ही कल्याण होता है।
राम जी की कथा के वक्ता और श्रोता दोनों ज्ञान की खजाने होते हैं ।
श्री राम की कथा संसार रूपी नदी के पार करने के लिए नाव है ।
रामकथा पंडितों को विश्राम देने वाली ,सब मनुष्यों को प्रसन्न करने वाली ,और कलयुग के पापों का नाश करने वाली है ।राम कथा कलयुग में सब मनोरथों को पूर्ण करने वाली कामधेनु गौ है और सज्जनों के लिए सुंदर संजीवनी जड़ी है ।
पृथ्वी पर यही अमृत की नदी है ,जन्म मरण रूपी भय का नाश करने वाली, और भ्रम रूपी मेंढकों को खाने के लिए सर्पणी है ,
यह राम कथा असुरों की सेना के समान नरकों का नाश करने वाली ,और साधु रूप देवताओं के कुल का हित करने वाली पार्वती (दुर्गा) है।
यह संत समाज रूपी समुद्र के लिए लक्ष्मी जी के समान है, और संपूर्ण विश्व का भार उठाने में अचल पृथ्वी के समान है। यम दूतों के मुंह पर कालिख लगाने के लिए यह यमुना जी के समान है ,और जीवो को मुक्ति देने के लिए राम कथा काशी के समान तथा सभी सुख संपत्ति की राशि है ।
श्री रघुनाथ जी की भक्ति और प्रेम की परम सीमा है, रामकथा मंदाकिनी नदी है जिसमें श्री सीता और रामचंद्र जी विहार करते हैं।
जया शर्मा प्रियंवदा