आओ! राम लला हर्षित जन मन भारती
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आओ! राम लला हर्षित जन मन भारती,
भाग सौभाग उदित हमारे करै मङ्गल आरती।
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सरयू तीरे ज्योतित सुख धाम साकेत सुर सुंदर,
भये प्रकट कृपाला राम लला ब्रह्मांड हितकारी।
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विधाता ब्रह्मा जी,सृष्टि बेल जग कल्याणी,
महाप्रतापी धर्म नीति-रीति निपुण पराक्रमी।
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जग रचयिता ब्रह्माजी के धर्मज्ञ कुल वंशज,
कश्यप पुत्र वैवस्वत मनु महाप्रलय के साक्षी।
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जल प्लावन अगाध,वैवस्वत मनु सृष्टि उद्गायक,
सृष्टि कोटि, श्रेष्ठि जग जीव मानवता के उन्नायक।
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मनु पुत्र इक्ष्वाकु ने बनाई अयोध्या राजधानी,
सृष्टि आरंभ की नगरी अयोध्या मन भावनी।
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मांधाता राजन तपस्वी धुन ॐकार गावन,
ज्योतिर्लिंग प्रकटे, भई धरा पावन भावन।
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राजा सगर, असमंज,अंशुमान,दिलीप तपस्वी,
भगीरथ का तप कठोर पावन गंगा का अविर्भाव।
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पराक्रमी तेजस्वी रघुवर रघुकुल राघवेंद्र,
प्राण जाय पर वचन न जाई यह रीत सदा।
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भये प्रकट कृपाला कौशल्या नंदन राम लला,
दशरथ के प्रिय राम,सरयू साकेत लीला।
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अयोध्या साकेत सुनी, पञ्च शतानि बीते,
पधारो! राम लला संग सिया लखन भ्राता।
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आओ! राम लला हर्षित जन मन भारती,
भाग सौभाग उदित हमारे,करै मङ्गल आरती।
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रचनाकार
डॉ. मनोहर गोरे ‘सत्संगी’
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