राम विवाह

दो नैन रघुनाथ के दो नैन जानकी के
ऐसे समाये चार नैन एक हो गए
सखियां भी घूर रही लक्ष्मण जी लखा रहे
दुनिया को मोहने वाले आज मोहित हो गए

फूलों को चुन टोकरी में डाल रहे दूजे क्षण निकाल रहे
विस्मित हुए से खड़े जानकी को निहार रहे
नैना सिया में खोए अधर मुस्काए रहे
सुध बुध खोए दोनों स्वपन के पंख पसार रहे

जनक दुलारी ऐसे सुध-बुध भूली
साड़ी के पल्लू को अंगूरी में उलझाए लिनो
सखियां है खींचे पीछे, आंखों को हाथों से मिचे
लेकिन जनक दुलारी बनी चकोर रस चांद का पाय लिनो

एक महलन में जागे चांद को निहार रही
दूजा चांद देख मंद मंद मुस्काए रहे
लखन जी बार बार पूछे भईया प्रेम हुआ है क्या
चेहरे में शर्म छाई अधर पे हा आई
पर गर्दन से रघुनाथ बार बार नकार रहे
रात भर सोए नहीं दोनों ही जागे रहे
गुरु जी भी देख रघुनाथ सारी कहानी जान रहे
अब होगा मिलन विष्णु और विष्णुप्रिया का भेद वो पहचान रहे

देश देशान्तर का राजा धनुष उठाने को आया
देख उन्हें सीता का मन था घबराया
उसने मां गौरी को पुकारा
करो मैया कुछ ऐसा
मिले वर सोचा है मैने जैसा
धनुष कोई उठा न पाए
राम ही मेरे हिस्से आए

एक एक कर सब वीर आए
उठाना छोड़ो धनुष हिला भी न पाए
राजा जनक का मन घबराया
कही गलत वचन तो नहीं उठाया
क्या वैदेही वर नहीं पायेगी
पृथ्वी वीरों से खाली हो जाएगी
रोष जब नहीं सह पाया सबको खरी खोटी सुनाया
वीर कहा यह सब सुन पाते है
लखन वीर वचन गाते है

गुरु की आज्ञा पाते ही राम
चले है बनने सीता पति राम
धनुष को जैसे हाथ लगाया
टूटकर बिखरा जैसे हो जर्जर काया
चारों तरफ मंगल ध्वनि छाई
राम ने आखिर सीता पाई

लेखक नवीन शर्मा