श्री राम रूप मुनि का धर
बन निकल रहे हैं।
देखो अवध के राजा
बन बन भटक रहे हैं।।
महलों की राजरानी
सीता चली है संग में।
पैरों में उनके कांटे
पग पग पे चुभ रहे हैं।।
लक्ष्मण जी बन के सेवक
श्री राम के चले हैं।
महलों में उर्मिला के
अश्रु छलक रहे हैं।।
दशरथ जी होके व्याकुल
श्री राम को पुकारें।
मेरे राम को बुला दो
ये प्राण निकल रहे हैं।।