राम सा कोई बन के तो दिखाए

राम सा कोई बन के तो दिखाए

मेरे राम पर उँगलियाँ उठीं हैं,
कथाएँ मिथ्या कुछ गढ़ी गईं हैं ।
उँगलियाँ जिन लोगो नें उठाई हैं,
वो धर्मनिरपेक्ष हैं ,साम्यवादी हैं ।
कहने को कहलाए बुद्धिजीवी हैं,
भीतर से किंतु निरे भोगवादी हैं।
निराधार तर्क कुतर्क हैं उनके ,
बातों में बहुत अनर्थ हैं उनके ।
कहें वो राम नें सीता को त्यागा,
फिर राम क्यूँ आदर्श कहलाया?
राम ने तो अपना सर्वस्व त्यागा,
कहाँ माँ सीता को केवल त्यागा?
सुख-भोग त्यागे,घर-बार त्यागा,
स्वर्णिम,उज्जवल संसार त्यागा।
वन सारे अपनाए,वृक्ष अपनाए ,
छप्पन भोग छोड़ कंदमूल खाए।
दलितों, पतितों का किया उद्धार,
पशु-पक्षियों से भी किया प्यार ।
रावण था लंकापति शक्तिशाली,
मति गई थी किंतु उसकी मारी।
माँ सीता का कर के अपहरण ,
पाप कर बैठा वो अधम गहन।
करवाना था माँ सीता को मूक्त,
युद्ध था अब अंतिम विकल्प ।
और युद्ध हुआ विकट भयंकर,
स्वर्ण लंका राख हुई जल कर।
विजित लंका को प्रभु नें त्यागा,
सहज उसे विभीषण को सौंपा।
चले अयोध्या ओर श्रीराम अब,
संग माँ सीता और भाई लखन।
बनें अयोध्या के नरेश श्री राम,
नगरी वो बन गई पावन धाम ।
किंतु राज का छोटा सा प्राणी,
कर बैठा प्रयोग दूषित वाणी ।
बोला कैसा राम,कैसा राजा ,
जिसनें सीता को न त्यागा ।
अशोक वाटिका में सीता रही,
किंतु वाटिका तो थी रावण की।
सीता थीं संदेहों के चक्रव्यूहों में,
पति राम थे अपनीं परिधियों में।
शंकित यदि नागरिक राज्य के ,
तो कैसे दमके सूर्य सौभाग्य के ?
कर के माँ सीता का परित्याग,
राम नें किया निजता का त्याग ।
स्वयं श्रीराम का अब कुछ न था,
जो था सब केवल था जग का ।
श्री राम का घाव किसनें जाना ,
आत्मा का संताप किसने जाना?
जब मुकुट सिर पे साम्राज्यों के ,
तो चुनाव कैसे हों स्व सुखों के ?
श्रीराम पर जो उँगलियाँ उठीं हैं,
समस्त कपट भरीं बेतुकी हैं ।
कोई श्री राम सा त्यागी तो बनें,
सब त्याग जगअनुरागी तो बनें।
आज नेता भारत में हैं बहुतेरे ,
ढ़ोंगी, भोगी कैसे सारे के सारे।
त्याग तनिक कर के तो दिखाएँ,
मोहमुक्त हो तप के तो दिखाएँ।
राम सा यदि न बन सके,न बने,
उनकी छाया ही बन के दिखाए।
राम की बने जो परछाई मात्र ,
वैतरणी पार,जीवन हो कृतार्थ ।
द्वारा प्रीता पंवार,
फरीदाबाद, हरियाणा ।
9540044105 ।