वैदिक शिक्षा पूर्ण करके, जब हुए राम 17 वर्ष के।
राज्यभिषक की पूर्व संध्या पर, कैकई की कठोर वाणी से।
आदेश हुआ श्री दशरथ जी का, जाना है तुझे राम वनवास।
पाकर आज्ञा पिता दशरथ जी की, हुए तैयार जाने को वनवास।
माता कोशिल्या से छिपाई सच्चाई, बहाना था जंगल का राज।
राज पाट की मोह माया से, हुए दूर रघुपति राघव राजा राम।
बनवास लिया 14 वर्ष तक, सहना पड़ा कठिन प्रवास।
साथ चले अनुज लक्ष्मण और भार्या जानकी ।
युवराज राम से मर्यादा पुरुषोत्तम बने श्री राम,
रावण जैसे अहंकारी के, किया अहंकार का नाश।
पाकर खबर रावण के नाश की, उठे अयोध्यावासी खुशी से झूम।
विजय दिवस का यह दिन हम आज भी धूमधाम से मनाते हैं !
दशहरा को रावण दहन कर छोटु सिंह’ माथे तिलक लगाते हैं!!!