जय श्री राम
नगरी भव्य अयोध्या में श्रीराम चन्द्र ने जन्म लिया
नामकरण का संस्कार तब गुरु वशिष्ठ ने पूर्ण किया।
दशरथ-कौशल्या प्रमोद में अद्भुत भाव उभर आये
लक्ष्मण,भरत,शत्रुघ्न तीन सुत कैकयी-सुमित्रा ने जाये।
साथ-साथ इनका भी ऋषि ने नामकरण संस्कार किया
चारों की छवि थी अनूप विधि ने भी खूब दुलार किया।
शनै-शनै हो गये बड़े परिवार खूब खुशहाल हुआ
धन्य अयोध्या नगरी का हर जन ही मालामाल हुआ।
सीता और उर्मिला दोनों जनक सुता अति प्यारी थीं
कुशध्वज की श्रुतिकीर्ति मांडवी पुत्री जग में न्यारी थीं
तोड़ सभा में धनु शिव का वीरोचित कृत्य अपार किया
परिणय-सूत्र जानकी ने श्रीराम संग स्वीकार किया।
देवों ने की पुष्पवृष्टि सिय-रघुवर का अभिसार हुआ
लक्ष्मण भरत और शत्रुहन का भी परिणय संस्कार हुआ।
लक्ष्म सँग उर्मिला प्रिय मांडवी भरत को प्यारी थी
प्रिय शत्रुहन के संग में श्रुतिकीर्ति की जोड़ी न्यारी थी।
चारों भाई संग संगिनी जीवनपथ में साथ हुए
सृष्टिचक्र के भँवरजाल में थाम हाथ में हाथ हुए
टेढ़ी चाल काल ने चलकर क्या-क्या उनके संग किया
बनी मंथरा कारण जिसका सभी रंग में भंग किया।
राजतिलक था जब रघुवर का किन्तु नहीं हो पाया था
कैकयी माँ ने पुत्र मोहवश ऐसा जाल बिछाया था।
वचनबद्ध राजा दशरथ थे कैकेयी ने हठ ठानी थी
तीन वचन नृप से भरवाकर बदली सभी कहानी थी।
राजतिलक हो भरत पुत्र का जिसका वह हकदार सही
चौदह वर्ष वनवास राम को माँग लिया उसने तब ही।
वचन दिया था जो दशरथ ने उसको पूर्ण निभाना था
चौदह वर्ष राम को अपने वन-वन में भटकाना था।
प्राण तजे पर वचन न छोड़ा वन को भेजे रघुराई
अमिट रीति रघुकुल की जग ने राजा दशरथ से पाई।
सीता हरण किया रावण ने पार उसे भव करना था
इसी लिए सीता को हरकर राम के हाथों मरना था।
भक्त जटायु ने भी अपना पूरा धर्म निभाया था
तभी राम के शुभ हाथों से निज उद्धार कराया था।
फर्ज निभाया था हनुमत ने बने राम के प्यारे जो
सीता माँ ने भी पहचाने कभी न हिम्मत हारे जो
पुरुषोत्तम कहलाये स्वामी भक्तों का निस्तार किया
संस्कृति के संवाहक बनकर कर्म धर्म अनुसार किया।
कोटि-कोटि वन्दन अभिनंदन जग के पालनहार सुनो
ताप हरो मेरे प्रभु सारे मेरी करुण गुहार सुनो।।
नाम तुम्हारा ही रटूँ, मैं प्रभु आठों याम
जय जय जय श्रीराम जी,काटो कष्ट तमाम।।
– संगीता अहलावत l