सीता-गाथा

सीता-गाथा
                           
सीतामही से विश्व पटल तक तेरे ही कारण है कीर्ति हमारी, 
कहती है दुनिया की देखो ये आई सीतामही से सीता कुमारी, 
लव-कुश जैसे ही घूम-घूम के गायेंगे गुण तेरे जनक दुलारी, 
सब को बतायेंगे धर्म की बातें, सब को सुनायेंगे बातें तुम्हारी।
 
सीतामही की भूमि से निकली, जनक ने पुत्री मान लिया था, 
शिव का धनुष जब तुमने उठाया, जग ने तेरा बल जान लिया था, 
मन से, करम से और वचन से, एक रहें यह ज्ञान दिया था,  
राम को माँग लिया गौड़ी से, राम को मन में जब मान लिया था। 
 
राम गए वनवास तो वन में, तुमने भी साथ में वास लिया था, 
नंगे पाँव चली मग कंटक, चौदह वर्ष उपवास किया था,  
पापी  दशानन  छल से बल से जीत न पाया, हर तो लिया था, 
बीसों बाहुओं में उसके खड्ग थे, तूने तो हाथ में घास लिया था। 
 
हे जगजननी भाग्य में अपने, तूने लिखा था ये कैसा खेला!
सुख नहीं देखा ज़रा-सा सा अवध का, फिर तुमने वन का दुख झेला, 
मूर्ख अयोध्या वासी ने तुम पर, ऊँगली उठाई तेरा बल तौला,  
त्याग दिया तुमने सुख वैभव, छोड़ दिया सब मोह का मेला। 
 
लव-कुश जैसे दो वीरों की माता, भूलेगा जग ना ये तेरा संदेशा, 
अबला नहीं है हे नारी तू जग में, रख अपने ऊपर तू अपना भरोसा, 
जब तक रहेगी भरत की ये भूमि, दर्प चमकता रहेगा हमेशा, 
चाहेगा जग तेरे जैसा ही बनना, चाहेगा जग होना तेरे ही जैसा।


प्रीति सुमन
सीतामढ़ी, बिहार
6201597291