सीता के मनोभाव
है मुझे संज्ञान राम मन अछोह है नहीं।
पूर्ण समर्पण है प्रिय यह बिछोह है नहीं।
डोले अयोध्या की नाव तुम ही कर्णधार हो ।
वे तुम्हारे प्राण तुम ही प्राणों का आधार हो।
मन तपस्वी हंस सा है कोई गोह है नहीं ।
पूर्ण समर्पण है प्रिय यह बिछोह है नहीं।
है मुझे संज्ञान राम मन अछोह है नहीं।
पूर्ण समर्पण है प्रिय यह बिछोह है नहीं
स्वप्न,प्रश्न अर्पण करने को प्रतिबद्ध हो ।
खुशियों की दीपावली देने को कटिबद्ध हो ।
प्रेम अपरिमित तुम्हारा इसकी टोह है नहीं।
पूर्ण समर्पण है प्रिय यह बिछोह है नहीं।
है मुझे संज्ञान राम मन अछोह है नहीं।
पूर्ण समर्पण है प्रिय यह बिछोह है नहीं
स्मृतियों का संबल और अंक तरु लताओं का ।
जान लूंँगी हिंडोला नाथ की भुजाओं का ।
प्रेम निर्झरी बहेगी मन में कोह है नहीं ।
पूर्ण समर्पण है प्रिय यह बिछोह है नहीं।
है मुझे संज्ञान राम मन अछोह है नहीं।
पूर्ण समर्पण है प्रिय यह बिछोह है नहीं
त्रिभुवन के स्वामी नाथ सत्य के अवतार हो ।
दृष्टि भर से पाप-पुण्य सब का बेड़ा पार हो ।
राम के हृदय समान कोई खोह है नहीं।
पूर्ण समर्पण है प्रिय यह बिछोह है नहीं।
है मुझे संज्ञान राम मन अछोह है नहीं।
पूर्ण समर्पण है प्रिय यह बिछोह है नहीं
–डॉक्टर दमयंती शर्मा ‘दीपा’
( गीतकार, साहित्यकार)