दीपमाला सरीखे प्रखर आ गये

सादर प्रणाम् 🙏

दीपमाला सरीखे प्रखर आ गये
सीख सब-कुछ गुरू से संवर आ गये
युद्ध कौशल या संगीत का मर्म हो
तपते सोने से कुंदन निखर आ गये

सिंह जैसे प्रबल बाल पुंगव कठिन
धर्म संयम के पर्वत शिखर आ गये
लक्ष्य कंटक हुए आज उपवन के सब
गीत गाते हुए दो भ्रमर आ गये

विप्रजन से सुसज्जित सभागार में
शास्त्रज्ञानी विकट मुनि प्रवर आ गये
जिन चरण की शरण सारा ब्रह्माण्ड है
राम के सामने हो निडर आ गये

आज संसार के सामने प्रश्न बन
माँ सिया के मुखर दो अधर आ गये
माँगने के लिये अपनी माता का न्याय
राम दरबार में दो कुँवर आ गये

मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’
लखनऊ।