भरत राम लक्ष्मण दिया तेल बाती
इन्हीं से प्रखर शत्रुहन्ता प्रभाती
ये कुल सूर्य के संग्रहित तेज का है
ये ब्रह्माण्ड में सत् अखिल ओज का है
यहाँ सृष्टि के नत सभी हैं प्रभारी
यहाँ दण्डवत हैं पुरारि सुखारी
यहाँ पितृ सत्ता में माता हैं शक्ति
सभी के हृदय में है वात्सल्य भक्ति
यहाँ लोकहित का ही बस ध्यान होगा
यहाँ विश्व कल्याण का मान होगा
न यदि राम होंगे भरत होंगे साथी
भरत राम लक्ष्मण दिया तेल बाती
इन्हीं से प्रखर शत्रुहन्ता प्रभाती
हैं चौदह बरस ये युगान्तर के जैसे
मगर चारों भाई युगान्धर के जैसे
बहू चार की चार शक्ति स्वरूपा
सिया माण्डवी उर्मिला श्रुत अनूपा
कहीं भी रहे कोई नगरी कुशल है
यहाँ राम का राज्य उज्ज्वल अटल है
अयोध्या के आसन सुशासन रहेगा
सदाचारियों का प्रकाशन रहेगा
ये दशरथ की ज्योति सदा एक होगी
हर एक चित्त कोमल सुहृद नेक होगी
अयोध्या का अति उच्च नित भाल होगा
दुराचारियों को महाकाल होगा
न यदि राम होंगे भरत होंगे साथी
भरत राम लक्ष्मण दिया तेल बाती
इन्हीं से प्रखर शत्रुहन्ता प्रभाती
मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’
लखनऊ