सनातन के श्री राम

माता शारदे को नमन
सनातन के श्री राम

सारे शिशु रघुकुल के, दशरथ के घर किलकारी भरें।
बलिहारी जातीं तीनों माता, दशरथ के मन आनंद भरें।
मोहक मुस्कान, नयनाभिराम घुंघराले केश हैं।
जोर से रोएँ,खुलकर हंँसे कभी, दिव्य वेश है।

दूध पिलाने मात कौशल्या, दौड़ीं राम के पीछे।
खेलत लुकाछिपी ,राम जी पहुंँचे, तभी पलंग के नीचे।
करधनी सोहे कमर में, छम- छम बाजे पैंजनी पांँव में।
धन्य हुआ रघुकुल का आंँगन, मात-पिता की छांँव में।

मैं भी लूंँगा वो ही कंदूक, जो भाइयों के हाथ है।
आंँसू भरी आंँखों से हठ करें, सभी चूमते माथ हैं।
रत्न जड़ित आंँगन में देखो, रूप निहारें अपना राम।
दूजा शिशु मानकर पकड़ें, बोलो सब जन जय श्री राम।

राज दुलारे मात-पिता के, भाइयों के अति प्यारे।
जनप्रिय शासक,वन्दित ऋषियों से, माताओं के दुलारे।
आदर दिया माता समान, आपने माँ शबरी को।
कौशल्या से अधिक दिया, सम्मान तुमने कैकेई को।

नहीं लाँघी मर्यादा तुमने, किसी घड़ी जीवन में।
भ्रमण किया पूरे भारत में, लेकर सबको साथ में।
श्रीराम भाई से बहुत स्नेह ,भाई भरत करते थे।
नहीं कम था राम का स्नेह, भरत पर प्राण देते थे।

स्वरचित मौलिक रचना
उषा कंसल बेंगलुरु
पूर्व प्रवक्ता हिंदी इंटर कॉलेज हरिद्वार