मेरे दिल में बसे रघुवर
तुम्हे कैसे मनाऊँ मैं।
कुछ भी छुपा नहीं तुमसे
तुम्हे क्या बताऊँ मैं।
तुम्ही कण कण में बसते हो
अवध में तुमको पाया है।
जब भी आँसू मेरे आए
बन गए मेरा साया है।
तुम्हे क्या आजमाऊँ मैं।
मेरे दिल———————-
मेरी धड़कन कहे रघुवर
दिल से आवाज आती है।
तेरे दर्शन को अब मेरी
अखियाँ तरस सी जाती है।
तुझे कैसे रिझाऊँ मैं।
मेरे दिल—————————
तेरे हनुमान है प्यारे
उन्हें हम रोज मनाते है।
लेते है नाम हम उनका
रघुवर मान जाते है।
तेरे दर कैसे आऊँ मैं।
मेरे दिल———————–
✍️राखी उपासना कौशिक धामपुर बिजनौर