भरत

राज महल के सुख को त्यागा
भ्राता की चरण पादुका पूजा।
इस धरती पर भरत समान
जन्मा नहीं कोई भाई दूजा।।

चौदह वर्षों तक किया भूषित
वस्त्रों वा मुकुट का परित्याग।
चरण पादुका की पूजा करके
धारण किया सदा वैराग्य।।

धरती पर ही सोये सदा
बिस्तर का भी किया था त्याग।
कंदमूल फल खाये हरदम
अन्न का भी किया था त्याग।।

राम लौट जब आए अयोध्या
भ्राता को सिंहासन लौटाया।
धूमधाम सब स्वजनों के संग
राजतिलक भी करवाया।।

भरत समान भाई को पाकर
सब भाई भी हो गए धन्य।
अयोध्या वासी खुशी से झूमे
भरत समान भाई ना अन्य।।

कैकेई की कोख भी धन्य हुई
जन्मा जो भरत सा पूत।
अगले जनम देवकी की कोख से
प्रभु जन्में श्री कृष्ण सपूत।।

विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर