गीत
केवट ने गंगा पार कराई जग के खेवनहार को
क्या अद्भुत दृश्य रहा होगा वो अँखियों के उद्धार को
भक्त था केवट, बुद्ध था केवट, बहुत सयाना था केवट
राम भले समझाते रहे, बातों में न आना था केवट
मुँदरी लौटा दी उसने अर खुलवा लिया मोक्ष द्वार को
क्या अद्भुत दृश्य रहा होगा वो अँखियों के उद्धार को
शबरी ने चख चख बेर दिए, कौसल्यानंदन खाय रहे
देख देख महिमा प्रभु की लक्ष्मण भैया चकराय रहे
वे झूठा खाते देख रहे इस जग के पालनहार को
क्या अद्भुत दृश्य रहा होगा वो अँखियों के उद्धार को
श्रापित रही अहिल्या कब से, ढ़ाल दी गई थी पत्थर में
आएँगे रघुनन्दन इक दिन, ये आस बसी थी पत्थर में
राम चरण ने नारी में बदला संगरूपी आकार को
क्या अद्भुत दृश्य रहा होगा वो अँखियों के उद्धार को
जब राम अयोध्या लौट रहे तब घी के दीप जले घर घर
पूनम में बदला मावस को, खुशियों से अश्रु बहे झर झर
दुल्हन के जैसी सजी अयोध्या राम लला सत्कार को
क्या अद्भुत दृश्य रहा होगा वो अँखियों के उद्धार को
– ममता लड़ीवालA