परिवार साथ ले विराजियेगा मन्दिर ही,
भक्त देखते रहेंगे दिल के प्रदेश में।
काम,क्रोध,मोह,मद,द्वेष का विकार भागे,
शान्ति,सद्भाव फैले पूरे परिवेश में।
शब्द का बनाके पुष्प उन्हें ही चढ़ा रहे हैं,
लोग ब्रम्ह देखते हैं जिस अवधेश में।
विनती यही है जब गृह में करें प्रवेश,
रामराज्य लाना मत भूलियेगा देश में।
करुनानिधान, भक्तवत्सल पुकारें लोग,
सत,चित,आनंद बताते घनश्याम हैं।
निर्गुण वो किन्तु धर्म हेतु धरते हैं रूप,
सर्वशक्तिमान ब्रम्ह प्रभु गुणधाम हैं।
पालक वो सृष्टि के सकाम पूजते हैं भक्त,
तत्वदर्शियों ने कहा वो तो निष्काम हैं।
भारत की भूमि को शरीर मान लें तो ख़ुद,
उस दिव्य देह का ही प्राणतत्व राम हैं।
उत्सव मना रहे हैं घर में जला के दीप,
चरणों में विनती भी करते हैं राम से।
जन्मों के पुण्य से मिला है महनीय क्षण,
दूर कीजियेगा हमें रोग,शोक,काम से।
अवध की आभा देख विस्मित हैं देव और,
कृपा बरसाएं प्रभु रूप अविराम से।
बीर बजरंगी की कृपा से देख लीजिएगा,
मंदिर बना रहे हैं वहीं धूमधाम से।
राधा कांत पांडे
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