राम जब जब मन में होगें, मनदीप जलते ही रहेगें
विचार सुरभित होगें तब तब, पुष्प खिलते ही रहेगें
अनिमष स्वीकार कर ली, आज्ञा अपने मात पिता की
सहर्ष त्यागा वैभव राजमहल का, राह पकड़ी संघर्षों की
जीता जिसने जब भी मन को, विजय मलहार उसी को मिलेगें
विचार सुरभित होगें तब तब, पुष्प खिलते ही रहेगें
प्रभु राम को माने सभी हैं, प्रभु राम की सुनता नहीं है
अधिकार की चाहत बहुत है, दायित्व को चुनता नहीं है
जीवन सिंधु में जो उतरेगा गहरा, मोती तो उसको मिलेगें
विचार सुरभित होगें तब तब, पुष्प खिलते ही रहेगें
द्वेष, भेद असत्य से व्यक्तित्व पंकिल सा हुआ है
स्वार्थ सिद्धि में अभ्यस्त होकर मानव शंकित सा हुआ है
दीपों का उत्सव है आया, यही जीवन को प्रकाशित करेगें
विचार सुरभित होगें तब तब, पुष्प खिलते ही रहेगें
मीनाक्षी भसीन
9891570067
अनुवाद अधिकारी, लेखिका