सुंदर सुखद प्रभात सुहानी
मन वन उपवन मधुरम धानी
देखा राम नयन सुख सीता
दोनों दृष्टि हुई उनमाँनी
खिले रूप नैनन मधु छलके
संग पैजनी पद पथ महके
देख राम मादक सम्मोहन
श्री सीता उर शत दल चहके
द्वय हिय उठा प्रेम स्पंदन
मूँद नयन भये दूनो ध्यानी
जन जन को यह प्रीत सुहाई
अतिशय मधुर सिया मुस्काई
मन ही मन वर ती मृगनयनी
रोम रोम रोपे रघुराई
खिले प्रेम की कोपल वेला
सिय विलोक प्रभु पद सकुचानी
देख राम भूली सब सृष्टि
खिली भाल सिन्दूरी वृष्टि
लहर लहर सरयू तट हुलसे
हुये एक द्वय लोचन दृष्टि
कठिन स्वयंबर सोचे सीता
भरा अश्रु पलकन अकुलाई
भरी सभा शिव धनु रघु तोड़ा
सीता हृदय स्वयं संग जोड़ा
डाल जानकी ने जयमाला
प्रेम बाण सिय नयनन छोड़ा
मिलती धरा सदा अम्बर से
सीता ने यह रीति चलाई
सुंदर सुखद प्रभात सुहानी
मन वन उपवन मधुरम धानी
कात्यायनी सिंह
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