” पीडा राम की “
रावण विजय का उल्लास ,भर गया आर्त नाद में
वानर भालू का आह्लाद ,कर दिया भंग
राम के एक वाक्य ने ।
रुक जाओ सिया ,पहले दो अग्नि परीक्षा
फिर पाओ बाम भाग ।
अनेको उल्कापात ,आन पड़े धरती पर।
जो धरती भारहीन ,हुई रावण वध से
डूब गई धरातल में ।
सागर प्रचंड लहरों से,प्रकट कर रहा अपना रोष
छिन छिन हो गया , हृदय सीता का
तार तार हुआ मान, पंगु हो गए पग
सूख गया कंठ।
मांग कौन रहा ,उसकी पवित्रता का प्रमाण
जिस हृदय में राम बसे ,जिन नैनो की ज्योति राम से
उसी राम ने आज भर दिए,अश्रु नयन सीता के
पर मौन मूक बनी, सिमटा रही निज देह को
लक्ष्मण हनुमान भी ,देख मात की दीनदशा
नतमस्तक कर्तव्य विमूढ खड़े।
हा! यह कैसी मर्यादा ,यह कैसी विवशता
मां अपवित्र हो सकती ?
क्या इतना आसान था,लक्ष्मण के लिए वह सामान जुटाना
यूं हनुमान का चुपचाप,मां का अपमान सह जाना
पर सब और मौन।
मौन मर्यादा का ,मौन अनुशासन का
मौन भक्ति का,मौन शक्ति का
एक कटु कठोर अप्रिय मौन
जो हरदम बहुत शोर करता है।
हाय रे ! कैसा पुरुषार्थ ,जो नारी का मान ना जाना
स्त्री का मान अपमान भी,पुरुष के हाथों रचा जाना
पर उस मौन में ,राम हृदय का आर्त नाद
ना सुना किसी ने ।
टुकड़े-टुकड़े हुए राम ,जब अपनी प्रिया को बोले
यह कठोर शब्द ।
हा राम !यह ,कैसी कठिन परीक्षा
कैसा कठिन जीवन?
नहीं सरल मर्यादा पुरुषोत्तम बन पाना
अपनी मर्यादा पर अडिग रह पाना
तभी तो जो राम है,वह एक ही है
तब से अब तक ,दूजा राम ना कोई दिखा
राम बनने का साहस ,कोई ना कर सका
राम दूसरे जन्म में खुद,राम ना हुए
पीड़ा राम की यह क्या कम है।
दीपा शर्मा