राम तुम्हीं रवि, तुम ही चन्दा, तुम ही नभ के तारे,
दूर करो हे राम! तुम्हीं अब जीवन के अँधियारे ।
एक तुम्हीं प्रभु नाथ हमारे।
जब जब तप्त हुआ मन आँगन ,
तुमने बरसाए शीतल घन ।
ये थी कृपा तुम्हारी ही जो ,
ऋतु हर एक हुई मनभावन ।
एक तुम्हीं प्रभु हो हिय की इस बगिया के रखवारे।
हम जग के साधारण प्राणी,
बस करते आए नादानी।
संकट की घड़ियों में हमने ,
मात्र तुम्हारी महिमा जानी ।
फिर भी तुमने खुले रखे प्रभु दया – दृष्टि के द्वारे।
हम हैं बेहद अज्ञानी जन,
कर न सके कोई भी चिंतन ।
पाते भी तो कैसे पाते,
सुगम और सच्चा जीवन धन।
प्रभु तुम राह दिखाने वाले, हम भटके बंजारे।
हम भक्तों की विनती सुनना ,
अपने श्रीचरणों में रखना।
जैसी दया आज तक की है,
वैसी दया सदा ही करना ।
सारा जग है राम सहारे, हम भी राम सहारे।
देवेंद्र देव