भव सागर तर जायेंगे
जो प्राणों में बसते हैं हम उनका भवन सजाएंगे,
प्राण प्रतिष्ठा करके हम भव सागर तर जायेंगे….
मन में राम हैं, तन में राम,
सृष्टि के कण कण में राम,
फिर भी मूढ़ मति मानव है देखो मांग रहा है प्रमाण ,
पांच शतक से निर्वासित जो पुनः स्वरूप दिखाएंगे,
प्राण प्रतिष्ठा करके हम भव सागर तर जायेंगे…
कलियां महकी खिले सुमन दल,
सरयू करती है नर्तन ,
और भक्तों की अंखियों से खुशियां झरती छम छम छम,
आएंगे मेरे राम अवध में हम सब मंगल गाएंगे,
प्राण प्रतिष्ठा करके हम भव सागर तर जायेंगे…
शालिग्राम नेपाल से आया रह गई दुनिया देखो दंग,
थाल लिए आ रहे जनक नगरी से मेवे, फल, पट संग,
रेशमी पट अलंकरण से प्रभु को हम क्या सजाएंगे,
प्राण प्रतिष्ठा करके हम भव सागर तर जायेंगे।
तरुणा पुंडीर ‘ तरुनिल ‘