गीत
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ऐसे हैं श्री राम ..।
ऐसे हैं श्री राम ..।
मेरे ऐसे हैं श्री राम…।
ऊँच नीच का भेद मिटाकर ,
सबको गले लगाते हैं।
पितु के आज्ञाकारी पुत्तर ,
पितु का वचन निभाते हैं।
छोड़ छाड़ कर राज-पाट सब,
वन में जा बस जाते हैं।
ऐसे हैं श्री राम ..।
मेरे ऐसे हैं श्री राम…!
विश्वामित्र के ख़ातिर रघुवर,
राक्षस से भिड़ जाते हैं।
यज्ञ में विध्न न आये कोई,
सेवा में जुट जाते हैं।
पूरा यज्ञ कराकर गुरु का,
अपना फर्ज निभाते हैं
ऐसे हैं श्री राम ..।
मेरे ऐसे हैं श्री राम…!
गौतम ऋषि ने मात अहिल्या,
को जब ठोकर मारी।
मात अहिल्या बनी शिला तब
थी उनकी लाचारी ।।
शिला अहिल्या को पद रज से,
श्राप मुक्त कर जाते हैं।
ऐसे हैं श्री राम ..।
मेरे ऐसे हैं श्री राम…!
डॉ. प्रतिभा ‘माही’ पंचकूला