कैकेई

कैकेई

मंथरा की कूटनीति ने कैकेई की मति को भ्रष्ट किया
कैकेई ने राम प्रेम भूल तब रघुकुल को गहरा कष्ट दिया!

वो भूल गई कि अर्धरात्रि को राम चिहुंक के उठते थे
“मझली माता… मझले माता”पुकार ,भूमि पर रपटते थे!

राम को चिपटा सीने से तब कौशल्या विकल हो जाती थीं
बेचैन पुत्र को गोद ले,कैकेई के कक्ष को जाती थीं!

मध्यरात्रि को दस्तक सुन कैकेई मन में मुस्काती थीं
“हो ना हो ये राम है “, हुलस के सांकल सरकाती थीं!

बिखरी अलकें भीगे कपोल देख, कैकेई विहवल हो उठती थीं
छाती से भींच तब अति प्रेम से “मेरे पुत्र राम” कह उठती थीं!
“मैने नहीं जना फिर भी भरत से पहले पुत्र राम है
दिव्य है ज्योति इसकी ,मुख छवि नयनाभिराम है!”

अबोध का निश्छल प्रेम देख कैकेई की आंखें भर आईं
ऐ राम,तू मेरा प्रियतम पुत्र और मैं तेरी मझली माई!

देख कैकेई का राम प्रेम, मां कौशल्या का जी भर आया
इष्टदेव को याद किया और कहा ,यही है प्रभु की माया !

कहा, कैकेई ने दिया तुम्हें निज प्रेम पर पहला अधिकार
लाज निभाना इसकी तुम,करना उनकी ज्यादा मनुहार!

आगे चलकर सब ध्वस्त हुआ नियति का क्रूरतम खेल हुआ
दशरथ के वचन और मंथरा की भ्रष्ट मति का मेल हुआ!

राज्याभिषेक था राम का दुल्हन सी सजी अयोध्या थी
हर कोना हो पुष्प से सज्जित ऐसी दशरथ की आज्ञा थी!

मंथरा की कुटिल चाल उस दिन कैकेई पर भारी थी
वाद विवाद ने इतिहास पलटने की कर ली पूरी तैयारी थी!

अयोध्या पर गिरी गाज रघुकुल केसौभाग्य का ह्रास हुआ
कैसी होनी,अभिषेक के बदले राम को बनवास हुआ!

पहले विमाता,फिर प्रिय माता और फिर कैकेई बनी कुमाता
माता के इस स्वार्थी कृत्य को इतिहास कभी नहीं बिसराता!

सर्वज्ञ थे प्रभु राम पर मनुष्योचित धर्म निभाना था
ये लांछन ले माता कैकेई को प्रारब्ध का मोल चुकाना था!

वन्दना रानी दयाल
दिल्ली एनसीआर
8368542706