रोम रोम से तुम्हें पुकारूं

जय ‌श्री राम

रोम रोम से तुम्हें पुकारूं ,क्षण भर न करूं आराम ।
मान रखो मेरे सुमिरन का, दर्शन मुझको दो श्री राम।
बोलो राम राम राम,बोलो राम राम राम।
बोलो राम राम राम,बोलो राम राम राम।

राह तकूं मैं शबरी बन कर, तुलसी सम मैं रचती छंद।
कथा तुम्हारी पढूं, लिखूं, भरूं हृदय अपने आनंद।
अतुलनीय अलौकिक छवि से, राम सजे बन लोक ललाम।
मान रखो मेरे सुमिरन का, दर्शन मुझको दो श्री राम।
बोलो राम राम राम,बोलो राम राम राम।
बोलो राम राम राम,बोलो राम राम राम।


मात-पिता ,भाई पत्नी के ,रिश्ते सभी निभाए ।
राजधर्म निभाने खातिर, पर सारे बिसराए।
मर्यादा की सीख दी अनुपम,गूंज रहा सारा भव धाम।
मान रखो मेरे सुमिरन का, दर्शन मुझको दो श्री राम।
बोलो राम राम राम,बोलो राम राम राम।
बोलो राम राम राम,बोलो राम राम राम।


दान ,सत्य ,आचरण तुम्हारे,गढ़ते हैं नव
प्रतिमान।
लोभ, मोह,मद काम जीत, परब्रह्म बने श्री राम ।
मन- मंदिर में भक्तों के, रहते हैं आठों याम।
मान रखो मेरे सुमिरन का, दर्शन मुझको दो श्री राम।
बोलो राम राम राम,बोलो राम राम राम।
बोलो राम राम राम,बोलो राम राम राम।


अश्रुपूरित ले नयन निहारूं, सुध बुध मैंने खोई ।
रुंधे कंठ से स्वर माला में, महिमा तेरी पिरोई।
राम नाम अमृत लगता है, कण कण बन गया तीरथ धाम।
मान रखो मेरे सुमिरन का, दर्शन मुझको दो श्री राम।
बोलो राम राम राम,बोलो राम राम राम।
बोलो राम राम राम,बोलो राम राम राम।

इष्ट देव स्वीकार करो ,अर्पित भक्ति के फूल।
भटक रही मैं राह दिखाओ, धारूं मैं पद धूल ।
हाथ तुम्हारा शीश धरो मम, मिले तभी विश्राम।
मान रखो मेरे सुमिरन का, दर्शन मुझको दो श्री राम।
बोलो राम राम राम,बोलो राम राम राम।
बोलो राम राम राम,बोलो राम राम राम।


शकुंतला मित्तल