हे रघुनंदन! दानव भंजक! कहाँ छुपे हो राम?
एक बार फिर से आ जाओ, छोड़ स्वर्ग का धाम।
त्राहिमाम करें सभी प्राणी, मचता हाहाकार।
फिर से हो अवतरित धरा पर, कर जाओ उद्धार।।
तुम्हीं बना सकते हो अब तो, सारे बिगड़े काम।
एक बार फिर से आ जाओ, छोड़ स्वर्ग का धाम।।
त्रेता में अवतार लिया था, किया पाप का नाश।
लेकिन कलयुग आते-आते, चढ़ा पाप आकाश।।
फिर से धनुष उठाओ भगवन्, करो महासंग्राम ।
एक बार फिर से आ जाओ, छोड़ स्वर्ग का धाम।।
मर्यादा सब भूल रहे हैं, भूले सब आचार।
कितनी स्वर्णिम रही विरासत, थे ऊँचे संस्कार।।
सबको मर्यादित कर जाओ, हे सीता के राम।
एक बार फिर से आ जाओ, छोड़ स्वर्ग का धाम।।
धरती का दोहन कर मानव, करता अत्याचार।
क्रोध प्रकृति का फूट पड़ा है, बनकर के अंगार।।
सुबह-शाम अब जपते हैं सब, एक तुम्हारा नाम।
एक बार फिर से आ जाओ, छोड़ स्वर्ग का धाम ।।
हे रघुनंदन! दानव भंजक! कहाँ छुपे हो राम?
एक बार फिर से आ जाओ, छोड़ स्वर्ग का धाम।।
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गीता चौबे गूँज
बेंगलूरु