सुर-ताल

सुर-ताल साध अनुपम हनुमान गा रहे हैं।
सजी’ दीपमय अयोध्या श्री राम आ रहे हैं।।

जो निषंग चाप सायक हैं दिनेश वंश मण्डन।
सिय वाम सँग शोभा अभिराम पा रहे हैं।‌।

महिमा अमित विशाला भुजबल अतुल कराला।
लछमण जी पीछे-पीछे सम शेष भा रहे हैं।।

अविराम अश्रुपूरित करबद्ध हैं भरत जी।
श्री राम की चरण रज मस्तक लगा रहे हैं।।

सुर, नाग, यक्ष, किन्नर, गन्धर्व, मुनि, तपस्वी।
सब त्रास मिट गए हैं गुणगान गा रहे हैं।।

सुखी’ सब नगर के वासी नहीं’ अब कहीं उदासी।
‘मन’ सबके हैं प्रफुल्लित भगवान पा रहे हैं।।

मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’
लखनऊ।