| राममयी – चौपाई |

| राममयी – चौपाई |

1
रघुकुल का फिर मान बढ़ाया।
दशरथ ने हर बचन निभाया।

2
बिछोह राम का सह नहीं पाये।
प्राण गंवा कर बचन निभाये।।

3
राम खड़ाऊ शीश लगाई।
दीखा नहीं भरत सम भाई ॥

4
राम, लखन शबरी के द्वारे।
भाग्य जगा लेकर उजियारे ।।

डा. जयसिंह आर्य