घनघोर तिमिर का हो वासी, पुनि राम स्वधाम पधार रहे।
पुनि उत्सव का अवसर आया, पुनि राम ललाम पधार रहे।।
पुनि दीप जलाओ हर घर में, मिलकर दरबार सजाओ सब।
पुनि घोष करो श्री राम की जय, पुनि आरति मँगल गाओ सब।।
वनवास कटा सँताप मिटा, पुनि राम अकाम पधार रहे।
घनघोर तिमिर का हो वासी, पुनि राम स्वधाम पधार रहे।
पुनि उत्सव का अवसर आया, पुनि राम ललाम पधारे रहे।।
जिन पर आश्रित हो देवों ने, निज काज असाध्य सँवार लिए।
जिन पद रज से पाषाणों ने, भवसागर अपने तार लिए।।
श्री राम वही सुखधाम प्रभू, अपने निज धाम पधार रहे।
घनघोर तिमिर का हो वासी, पुनि राम स्वधाम पधार रहे।
पुनि उत्सव का अवसर आया, पुनि राम ललाम पधारे रहे।।
हे राम रमापति पुरुषोत्तम, हे नौमि निरन्तर रघुवीरम्।
हे दयाकुँज हे अविनाशी, हे धीर शिरोमणि गम्भीरम्।।
अवधेश महेश दिनेश विभू, सब उर सुखधाम पधार रहे।
घनघोर तिमिर का हो वासी, पुनि राम स्वधाम पधार रहे।
पुनि उत्सव का अवसर आया, पुनि राम ललाम पधारे रहे।।
मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’
लखनऊ।