मुक्तिदाता

● मुक्तिदाता ●

श्री राम सुन लो अरज मेरी, कामना पूरी करो।
भव बंध काटो हे हरि, अब वेदना मेरी हरो।।
हे मुक्तिदाता बोधमय, निज भवन में प्रभु पग धरो।
विह्वल चकित अति हर्षिता, जीवन सफल मेरा हुआ।१।

ये नयन देखेंगे पुनः, प्रभु राम की स्थापना।
साक्षी बनूँ इस यज्ञ की, यूँ सुफल होगी कामना।।
जो प्राण उत्सर्गित हुए, वे कारसेवक धन्य हैं।
वो साधना की चरम सीमा, त्याग उनका वंद्य है।२।

आहूत हो समिधा बने, इस यज्ञ हित निज प्राण दे।
उन पर कृपा रघुवर करो, अपनी शरण निर्वाण दे।।
श्रीराम के सेवार्थ में, यह त्याग अनुकरणीय हैं।
कोटिक नमन वन्दन सदा, वे प्रात स्मरणीय हैं।।३।

ज्योतिर्मयी नवसूर्य सी, दमके ध्वजा आकाश हो।
अक्षुण्ण हो रघुवर पताका, कलुष कल्मष नाश हो।।
अतिचारियों का ध्वंस हो, धारा सनातन पुनि बहे।
कोटिक सहस्त्रों वर्ष तक, ध्वज केसरी ज्योतित रहे।४।

श्रीराम जयजयराम का, जयनाद हो जयघोष हो।।
कल्याणमय हित भावना, पावन शुचित बिन दोष हो।।
समभाव की गंगा बहे, नव चेतना के सुर सजें।
मालिन्य मन के मेट कर, श्रीराम हर तन-मन भजें।५।

– अभिलाषा विनय